होली 2025 – उत्सव, महत्व और कथा के साथ जानें अन्य बातें… :
- Bhavika Rajguru
- Mar 11
- 4 min read
मार्च की शुरुआत के साथ ही, होली 2025 को लेकर लोगों में उमंगें बढ़ गई हैं! होली एक प्राचीन हिंदू त्योहार
है, जिसे स्नेह और रंगों के त्योहार के रूप में जाना जाता है। यह एक ऐसा दिन है जब आप खुशी से कह
सकते हैं दाग अच्छे हैं। यह त्योहार दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका दहन के रूप में
मनाया जाता है और अगले दिन लोग धुलेड़ी खेलते हैं। यह रंगोत्सव साल भर का सबसे प्रतीक्षित पर्व है
और यह टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने का प्रतीक भी है, जैसा कि बुरा ना मानो होली है, के वाक्य में दिखता है। लोग इस दिन अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं, रंगों से खेलते हैं, मिठाईयां बांटते हैं और मस्ती करते हैं।

होली 2025 शुभ तिथियां और समय :
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली फाल्गुन पूर्णिमा को मनाई जाती है, जब चंद्रमा पूरी तरह से पूर्ण होता है। इस
वर्ष की होली के प्रमुख तिथियां निम्नलिखित हैं:
होलिका दहन: गुरुवार 13 मार्च 2025
होलिका दहन मुहूर्त: 13 मार्च, शाम 11:26 बजे से रात 12:06 बजे तक
पूर्णिमा तिथि शुरू: 13 मार्च 2025 को 10:35 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को 12:23 बजे
रंगवाली होली (धुलेड़ी): शुक्रवार 14 मार्च 2025
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: वैदिक पंचांग के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त 13 मार्च को रात्रि 11:26 बजे
से 12:30 बजे तक रहेगा, यानी कुल 1 घंटा 4 मिनट का समय होगा।
होली का महत्व :
होली का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक है।
लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, ज्योतिष के हिसाब से होली का उत्सव एक खास समय
पर मनाया जाता है। इस समय सूर्य और चंद्रमा आकाश में एक दूसरे के विपरीत स्थित होते हैं, जो कि
विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दौरान चंद्रमा सिंह और कन्या राशि में रहता है, जबकि सूर्य मीन
और कुंभ राशि में होता है। इसके अलावा, राहु धनु राशि में गोचर करता है। यह सब ज्योतिषीय दृष्टि से
एक शुभ समय माना जाता है, जिससे शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है।
शास्त्रों में पूर्णिमा तिथि को विशेष माना गया है, क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा से समृद्धि प्राप्त
होती है। होलिका दहन की रात को महासिद्धि की रात माना जाता है, जब किए गए सभी शुभ कार्य फलित
होते हैं और मनचाहे परिणाम प्राप्त होते हैं। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में होली से
जुड़ी अनेक कहानियां और महत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है।
होली का ज्योतिषीय महत्व :
लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार होली का उत्सव न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण
है, बल्कि इसका ज्योतिषीय महत्व भी बहुत अधिक है। इस त्यौहार के समय दो प्रमुख ज्योतिषीय घटनाएं
घटित होती हैं:
बृहस्पति का गोचर (Jupiter’s Transit): होली के समय बृहस्पति का विशेष प्रभाव देखने को मिलता
है। बृहस्पति ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और विकास का ग्रह माना जाता है। इस समय बृहस्पति की
स्थिति अनुकूल रहती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन मनाए जाने वाले
त्यौहार से जीवन में सौभाग्य, आध्यात्मिक विकास, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
सूर्य का गोचर (Sun’s Transition): होली के दौरान सूर्य कुंभ से मीन राशि में प्रवेश करता है, जिसे
उत्तरायण के रूप में जाना जाता है। यह एक शुभ समय माना जाता है, क्योंकि सूर्य की ऊर्जा अपने
चरम पर होती है, जो जीवन में सकारात्मकता, सफलता और समृद्धि लाती है।
इसके अलावा, इस दिन भगवान हनुमान की पूजा करने से बुरी ऊर्जाओं से छुटकारा मिलता है। हनुमान जी
के मंदिर में दर्शन करके गुड़ और काले धागे चढ़ाने से नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सकता है। इस दिन
विशेष रूप से ओम् हनुमंते नमः का जाप करना और काले धागे पहनना लाभकारी होता है।
होली पर किस-किस देवता की होती है पूजा :
लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार होली के दिन भगवान शंकर, राधा कृष्ण, माता लक्ष्मी
और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा का विधान है।
1. भगवान शंकर की पूजा: होली के दिन भगवान शंकर की पूजा आराधना करना शुभ माना जाता है।
2. राधा कृष्ण की पूजा: राधा कृष्ण की पूजा से जीवन में प्रेम का आगमन होता है और प्रेम संबंध
मजबूत होते हैं।
3. माता लक्ष्मी की पूजा: इस दिन माता लक्ष्मी की उपासना से घर में पैसे की तंगी समाप्त होती है।
4. भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा
आराधना करने से समस्त भय और संकट समाप्त होते हैं।
होलिका दहन पूजा विधि :
होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की मूर्ति बनाकर थाली
में रख लें। उसके साथ रोली, फूल, मूंग, नारियल, अक्षत, साबुत हल्दी, बताशे, कच्चा सूत, फल और कलश रखें।
फिर भगवान नरसिंह का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चंदन, पांच प्रकार का अनाज और फूल अर्पित करें।
इसके बाद कच्चा सूत लेकर होलिका की सात परिक्रमा करें। अंत में गुलाल डालकर जल चढ़ाएं। यह पूजा
विधि शुभ मानी जाती है, और होलिका दहन के समय नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
होलिका पर कच्चा सूत चढ़ाने की परंपरा होलिका दहन के दौरान कच्चे सूत को चारों ओर लपेटने और फिर अग्नि की परिक्रमा करते हुए उसे अर्पित करने की परंपरा है। यह शनि ग्रह के प्रभाव को संतुलित करने और शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। कच्चा सूत बीमारियों का नाश करने और सभी बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है।
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