स्नान-दान का पर्व: मेष संक्रांति 14 अप्रैल को, सूर्य को अर्घ्य देने से पाएं रोग और परेशानियों से मुक्ति
- Bhavika Rajguru
- Apr 10
- 4 min read
मेष संक्रांति, जिसे हिंदू सौर नववर्ष भी कहा जाता है, भारतीय ज्योतिष में एक विशेष पर्व है, जो सूर्य के मेष राशि में
प्रवेश को दर्शाता है। यह पर्व सूर्य के उत्तरायण होने के समय के आसपास मनाया जाता है और पूरे भारत में इसे
विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। 2025 में यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा, और इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने का महत्व है। आइए, पुष्कर की लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु से इस पर्व के महत्व, पूजा विधि, और कुछ विशेष उपायों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

मेष संक्रांति का महत्व :
मेष संक्रांति हिंदू कैलेंडर में सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के समय मनाई जाती है। इसे सौर नववर्ष भी कहा जाता है
और यह दिन विशेष रूप से धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य देव का मेष राशि में
प्रवेश होता है, जो की एक नए जीवन चक्र का प्रारंभ होता है। सूर्य देव को आत्मा का कारक माना जाता है, और
उनकी कृपा से जीवन में उन्नति और सुख-समृद्धि आती है।
पुष्कर की लाल-किताब की ज्योतिर्विद भविका राजगुरु के अनुसार, इस दिन सूर्य की पूजा करने से मानसिक और
शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। इस दिन किए गए उपाय व्यक्ति को रोगों, बाधाओं और समस्याओं से मुक्ति दिलाते हैं।
मेष संक्रांति का शुभ मुहूर्त और योग :
2025 में मेष संक्रांति का पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा, जो कि दोपहर
03:12 बजे होगा। इस दिन के विशेष पुण्य काल का समय सुबह 05:57 बजे से लेकर दोपहर 12:22 बजे तक रहेगा, जबकि महा पुण्य काल सुबह 05:57 बजे से 08:05 बजे तक रहेगा।
इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त का संयोग दोपहर 11:56 बजे से 12:47 बजे तक रहेगा, जो पूजा-पाठ और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ है। इस समय किए गए धार्मिक कार्यों से दोगुना पुण्य प्राप्त होता है।
मेष संक्रांति पर विशेष पूजा विधि :
मेष संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना और सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना अत्यंत लाभकारी
माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान या तीर्थगुरु श्री ब्रह्म पुष्कर सरोवर में स्नान का महत्व है, क्योंकि
गंगा या तीर्थगुरु श्री ब्रह्म पुष्कर सरोवर में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और शारीरिक समस्याएं दूर होती
हैं।
सूर्य देव को अर्घ्य देने की विधि:
1. सबसे पहले सूर्योदय से पहले स्नान करें और पवित्र भाव से पूजा का संकल्प लें।
2. तांबे के बर्तन में पानी और गुड़ डालें, फिर उसमें लाल फूल और चावल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
3. सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद "ॐ सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करें।
4. दान करें: इस दिन विशेष रूप से तांबे का बर्तन, गेहूं, गुड़, और लाल वस्त्र दान करना शुभ माना जाता है।
इसके अलावा, गाय को हरा चारा खिलाना और ब्राह्मणों को भोजन कराना भी पुण्यकारी होता है।
मेष संक्रांति पर सूर्य पूजा के लाभ :
1. रोगों से मुक्ति: सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने से शरीर में व्याप्त तमाम रोग और परेशानियां समाप्त होती
हैं। परिवार के किसी सदस्य पर मुसीबत या रोग नहीं आता।
2. मान-सम्मान की वृद्धि: सूर्य देव की कृपा से व्यक्ति का मान-सम्मान बढ़ता है और समाज में प्रतिष्ठा
मिलती है।
3. दोषों का निवारण: सूर्य देव की पूजा से कई प्रकार के दोष दूर होते हैं, जिससे जीवन में समृद्धि और सुख-
शांति आती है।
4. पुण्य की प्राप्ति: इस दिन दान और पुण्य कार्यों का विशेष महत्व है। गंगा स्नान और सूर्य पूजा से ब्रह्म लोक
की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।
मेष संक्रांति पर विशेष मंत्र :
सूर्य देव की पूजा के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना भी अत्यंत लाभकारी है। ये मंत्र सूर्य देव की कृपा प्राप्त
करने में मदद करते हैं:
1. ॐ सूर्याय नमः
2. ॐ आदित्याय च सूर्याय
3. ॐ ह्रं सूर्याय नमः
इन मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
मेष संक्रांति से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें :
1. खरमास का समापन और मांगलिक कार्यों की शुरुआत:13 मार्च को मीन संक्रांति के साथ खरमास का
आरंभ हुआ था, जो 14 अप्रैल को मेष संक्रांति के साथ समाप्त होगा। पुष्कर की लाल-किताब की
ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, हर साल खरमास के बाद, यानी 15 या 16 अप्रैल से मांगलिक कार्यों के
मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। हालांकि, इस साल गुरु अस्त होने से भी मांगलिक कार्यों के लिए कुछ विलंब हो गया
है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब गुरु अस्त होता है, तो उसे भी शुभ समय के रूप में नहीं माना जाता। इस
कारण विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए 3 मई से शुरू होने वाले मुहूर्त ही सबसे उपयुक्त
माने जाएंगे।
2. जलदान का महत्व: इस समय सूर्य की रोशनी अधिक समय तक धरती पर रहती है, जिससे गर्मी का मौसम
शुरू होता है। इस समय जलदान करने का महत्व है, क्योंकि इससे पुण्य प्राप्त होता है जो कभी खत्म नहीं
होता।
निष्कर्ष :
मेष संक्रांति एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के लाभ
प्रदान करता है। इस दिन किए गए उपायों से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और रोगों से मुक्ति मिलती है। पुष्कर की
लाल-किताब की ज्योतिर्विद भविका राजगुरु के अनुसार, इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा और दान से पुण्य की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
जय सूर्य देव!
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