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सर्वपितृ अमावस्या: पितरों के प्रति श्रद्धा और तर्पण का महोत्सव :

हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का आरंभ 01 अक्टूबर 2024 को रात 09 बजकर 34 मिनट पर होगा और 03 अक्टूबर को सुबह 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, 2 अक्टूबर 2024 को सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी।

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या या पितृ विसर्जन

अमावस्या कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक

है। यह दिन पितरों की तृप्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें श्रद्धा

से श्राद्ध का आयोजन कर पितरों को सम्मानित किया जाता है।


सर्वपितृ अमावस्या का महत्व :

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व स्कंदपुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है। अमावास्या का अर्थ

चंद्रमा की काली रात है, जिसमें सूर्य की एक विशेष किरण ;अमा का प्रकाश होता है। यह

तिथि विशेष रूप से पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे पितरों को

विदा करने का अंतिम अवसर माना जाता है।

पितरों की तृप्ति :

इस दिन अग्निष्वात्त और बर्हिषद् जैसे दिव्य पितर श्राद्ध प्राप्त करते हैं। श्राद्ध का कार्य

पितरों को तृप्त करने के लिए किया जाता है, जो जीवन में सुख और समृद्धि लाता है। यदि

वंशज श्राद्ध नहीं करते, तो पितर भूख और प्यास से व्याकुल रहते हैं। श्रेष्ठ ब्राह्मणों को

श्राद्ध में भोजन कराने से पितरों को संतोष मिलता है।

गयाजी और ब्रह्म पुष्कर का महत्व:

गयाजी और ब्रह्म पुष्कर सरोवर में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। यहां श्राद्ध करने से

पितरों को हमेशा के लिए तृप्ति प्राप्त होती है, जिससे वे संतुष्ट होकर अपने लोक को लौटते

हैं।

श्राद्ध की विधि :

श्राद्ध करते समय शास्त्रीय विधियों का पालन करना महत्वपूर्ण है। श्राद्धकर्ता को

दक्षिणाभिमुख खड़ा होकर श्राद्ध का संकल्प करना चाहिए और ब्राह्मण को उचित विधि से

भोजन कराना आवश्यक है।

संकल्प और मंत्र :

ब्राह्मण भोजन का संकल्प निम्न मंत्र से करें:

"पूर्वोच्चारित संकल्पसिद्धयर्थ महालय श्राद्धे यथा संख्यकान ब्राह्मणान भोजयिष्ठे।"

इसके बाद "ऊं गोत्रं नो वर्धना दातारं नोऽभिवर्धताम्" मंत्र से ईश्वर से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना

करें।

बलियों का दान :

विभिन्न बलियों का दान करना भी महत्वपूर्ण है:

1. गो-बलि: ऊं सौरभेय्य: सर्वहिता: मंत्र पढ़ते हुए गो-बलि दें।

2. श्वान-बलि: द्वौ श्वानौ श्याम शबलौ मंत्र पढ़ते हुए कुत्तों को बलि दें।

3. काक बलि: ऊं ऐद्रेवारुण वायण्या मंत्र पढ़कर कौवों को भूमि पर अन्न दें।

4. देवादि बलि: पिपीलिका कीट पतंगकाया मंत्र बोलते हुए बलि दें।

इन बलियों के बाद तर्पण अवश्य करना चाहिए।

नक्षत्रों के अनुसार श्राद्ध का महत्व :

भारतीय संस्कृति में श्राद्ध केवल पितरों की तृप्ति के लिए नहीं, बल्कि विभिन्न नक्षत्रों के अनुसार विशेष फल भी प्राप्त होता है:

1. कृत्तिका नक्षत्र: सभी इच्छाओं की पूर्ति।

2. रोहिणी नक्षत्र: संतान सुख की प्राप्ति।

3. मृगशिरा नक्षत्र: गुणों में वृद्धि।

4. आर्द्रा नक्षत्र: ऐश्वर्य की प्राप्ति।

5. पुनर्वसु नक्षत्र: सुंदरता में वृद्धि।

6. पुष्य नक्षत्र: अतुलनीय वैभव।

7. आश्लेषा नक्षत्र: दीर्घायु।

8. मघा नक्षत्र: अच्छी सेहत।

9. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र: अच्छा सौभाग्य।

10. हस्त नक्षत्र: विद्या की प्राप्ति।

11. चित्रा नक्षत्र: प्रसिद्ध संतान।

12. स्वाति नक्षत्र: व्यापार में लाभ।

13. विशाखा नक्षत्र: वंश वृद्धि।

14. अनुराधा नक्षत्र: उच्च पद प्रतिष्ठा।

15. ज्येष्ठा नक्षत्र: उच्च अधिकार और जिम्मेदारी।

16. मूल नक्षत्र: आरोग्य की प्राप्ति।

पितृऋण से मुक्ति:आशीर्वाद प्राप्ति का महा-उपाय:

-पितृऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध एक अनिवार्य कर्म है। इस दिन महिलाएं संध्या समय दीपक जलाकर पूड़ी और मिष्ठान्न अपने दरवाजों पर रखती हैं, जिससे यह दर्शाया जाता है कि पितर भूखे न जाएं। दीप जलाकर उनके मार्ग को आलोकित किया जाता है।

-यदि किसी परिवार को पितृदोष, कलह, या दरिद्रता का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, तो सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध-तर्पण करना आवश्यक है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितृदोष के प्रभाव में कमी आती है।

श्राद्ध का कार्य केवल रस्म नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक संबंध है। जब हम अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तो हम उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं और अपने जीवन को पवित्र बनाते हैं। इस प्रकार, श्राद्ध का आयोजन कर हम न केवल अपने पितरों का सम्मान करते हैं, बल्कि अपने जीवन में सुख और समृद्धि को आमंत्रित करते हैं।


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