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पौष मास: महत्व, विशेष अनुष्ठान और नियम :

पौष मास का परिचय

पौष मास हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह हिंदू पंचांग का दसवां महीना है और इसकी शुरुआत 16

दिसंबर से होती है, जबकि इसका समापन 13 जनवरी को होता है। इस दौरान कुंभ स्नान का आयोजन भी

होता है, जो कि महाकुंभ का हिस्सा है। इस महीने सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। पौष

माह में कई व्रत-त्योहारों का आयोजन किया जाता है जैसे कि सफला एकादशी, सोमवती अमावस्या, गुरु

गोबिंद सिंह जयंती, और पुत्रदा एकादशी।'

पौष मास का महत्व :

पौष माह का धार्मिक एवं ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इस दौरान सूर्य देव धनु राशि में

विराजमान रहते है तथा माह की समाप्ति पर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे मकर संक्रांति कहते हैं।

इस समय सूर्य देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पौष मास में दान का अत्यधिक महत्व है, विशेषकर

तिल, गुड़, और वस्त्रों का। माना जाता है कि इस मास में किए गए पुण्य कर्मों से व्यक्ति को सुख और

समृद्धि मिलती है।

1. सूर्य देव की उपासना:

o पौष मास का संबंध सूर्य देव से है। यह महीना सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने के लिए

विशेष माना जाता है।

o हर रोज़ तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।

इससे कुंडली के ग्रह संबंधी दोष दूर होते हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

o रविवार के दिन सूर्य देव को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाना बेहद लाभदायक है।

2. दान-पुण्य का महत्व:

o इस माह में तिल, गुड़, कंबल, वस्त्र, और तांबे के बर्तन का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना

गया है।

3. शास्त्रों में उल्लेख:

o भविष्य पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को सूर्य पूजा का महत्व बताया

था। सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं और उनकी उपासना से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

4. भगवान विष्णु की पूजा: इस माह में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। गीता का पाठ अवश्य

करें और संभव हो तो लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

5. श्राद्ध कर्म: पौष महीने की शुभ तिथियों पर पितरों का श्राद्ध कर्म करें।


पौष मास में क्या न करें?

1. मांस-मदिरा का सेवन: इस महीने मांस तथा मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। यह स्वास्थ्य के

लिए हानिकारक है।

2. मांगलिक कार्य: इस माह को मांगलिक कार्यों के लिए उचित नहीं माना जाता है, जैसे विवाह।

3. स्वास्थ्य का ध्यान: पौष माह में सर्दी के कारण स्वास्थ्य पर ध्यान देना आवश्यक है।


पौष मास में पितृ दोष से मुक्ति के उपाय :

1. तांबे के बर्तन का दान: यह सूर्य से संबंधित होता है और पितृ दोष कम करने में सहायक होता है।

2. सफेद चीजों का दान: चंद्र दोष कम करने में ये मददगार होता है।

3. दीपक जलाना: घर में सुख और शांति लाने के लिए दीपक जलाना महत्वपूर्ण होता है।

4. जूते-चप्पल का दान: शनि दोष से छुटकारा पाने के लिए यह उपाय करें।


पौष माह के मंत्र :

पौष माह में सूर्य देव की पूजा और साधना का विशेष महत्व है। कुछ महत्वपूर्ण मंत्र हैं:

  • सूर्य गायत्री मंत्र:

o ऊँ भास्कराय विद्महे, महातेजाय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।

  • आदित्य मंत्र:

o ऊँ आदित्याय नमः।

  • सूर्य बीज मंत्र:

o ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।

  • सूर्य नमस्कार मंत्र:

o ऊँ घृणि सूर्याय नमः।

  • सूर्य उपासना का महामंत्र:

o ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।


पौष मास धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक शुभ और फलदायक समय है। इस मास में सूर्य और भगवान विष्णु

की पूजा-अर्चना, व्रत और दान करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता

है। पौष मास के नियमों और परंपराओं का पालन करके आप जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति

प्राप्त कर सकते हैं।

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