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घर का वास्तु:- संतुलित और समृद्ध जीवन के लिए प्रभावी उपाय:

वास्तु शास्त्र एक महत्वपूर्ण वास्तु और स्थानिक विज्ञान है, जो रहने की जगहों के निर्माण

और संरचना को प्राकृतिक तत्वों के साथ संतुलित करने का मार्गदर्शन करता है। जो उसमें

निवास करने वालों की शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक उन्नति को सुनिश्चित करती है।

इस प्राचीन विज्ञान के अनुसार, हर संरचना पांच तत्वों: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश

से प्रभावित होती है। ये तत्व केवल भौतिक पदार्थ नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का भी

प्रतीक हैं। इन तत्वों का संतुलन या असंतुलन घर में सुख-शान्ति या अशांति को जन्म दे

सकता है।

इस ब्लॉग में, हम वास्तु शास्त्र के व्यावहारिक सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, जिनके माध्यम से

सरल और प्रभावी घरेलू उपाय आपके निवास स्थान में असंतुलनों को ठीक करके आपकें

जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य, और समग्र उन्नति को बढ़ानें में सहायक होंगें।

1. प्रवेश: सकारात्मक ऊर्जा का द्वार :

घर का प्रवेश स्थान वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ऊर्जा का मुख्य प्रवेश बिंदु है।

एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया प्रवेश सकारात्मक ऊर्जा और अवसरों को आकर्षित

करता है, जबकि एक खराब रखा हुआ या अव्यवस्थित प्रवेश नकारात्मकता और बाधाओं की

ओर ले जा सकता है।

उपाय:

  • सुनिश्चित करें कि प्रवेश स्थान अच्छी रोशनी, साफ-सुथरा और स्वागत योग्य हो। प्रवेश के

पास जूते रखने वाली अलमारी या अव्यवस्था न रखें, क्योंकि इससे सकारात्मक ऊर्जा का

प्रवाह बाधित होता है।

  • प्रवेश के पास रंगोली या एक जल फव्वारा (water-fountain) लगाएं। वास्तु में पानी समृद्धि

का प्रतीक है, जो समृद्धि को आकर्षित कर सकता है।

  • मुख्य दरवाजा अंदर की ओर खुलना चाहिए और यह चरमराना नहीं चाहिए। इसे नियमित

रूप से ऑयल करें ताकि यह सुचारू रूप से चले।

2.दिशाओं और पंच- तत्वों का संतुलन:

वास्तु शास्त्र में प्रत्येक दिशा विशेष तत्वों से जुड़ी होती है, और इन तत्वों का संतुलन एक

सामंजस्यपूर्ण निवास के लिए आवश्यक है। जैसे- उत्तर-पूर्व दिशा जल से, दक्षिण-पूर्व अग्नि से,

दक्षिण-पश्चिम पृथ्वी से, और उत्तर-पश्चिम वायु से संबंधित है।

उपाय:

  • उत्तर-पूर्व में जल सुविधाएं जैसे एक्वेरियम या जल फव्वारे (water-fountain) रखें ताकि

समृद्धि और स्वास्थ्य को बढ़ावा मिले।

  • दक्षिण-पूर्व कोने को अच्छी रोशनी और अव्यवस्था से मुक्त रखें। यह रसोई के लिए आदर्श

स्थान है। यदि रसोई अन्यत्र है, तो सुनिश्चित करें कि चूल्हा दक्षिण-पूर्व में हो।

  • दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र स्थिरता और शक्ति से जुड़ा है। इस दिशा में भारी फर्नीचर या आलमारी

रखने से समृद्धि और संतुलन मिलता है।

  • उत्तर-पश्चिम दिशा को अच्छी वेंटिलेशन वाली होना चाहिए। यह क्षेत्र मेहमानों के कमरे या

भंडार कक्ष के लिए उपयुक्त है।

3. लिविंग रूम: ऊर्जा के आदान-प्रदान का केंद्र:

लिविंग रूम वह स्थान है जहां परिवार के सदस्य और मेहमान इकट्ठा होते हैं, जिससे यह

सकारात्मक ऊर्जा के मुक्त प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण है। इस स्थान की व्यवस्था, रंग, और

सजावट का घर के माहौल और रिश्तों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।

उपाय:

  • दीवारों के लिए हल्के और मौहक रंग जैसे बेज, क्रीम, या हल्का हरा चुनें। ये रंग शांति और

आराम को बढ़ावा देते हैं।

  • मुख्य प्रवेश द्वार के सामने आईने को रखने से बचें, क्योंकि ये सकारात्मक ऊर्जा को पुनः

बाहर भेज सकते हैं। इसके बजाय, उन्हें उत्तर या पूर्व दीवारों पर रखें।

  • फर्नीचर को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि बातचीत को बढ़ावा मिले और रास्तों में बाधा न

हो। परिवार के मुखिया को पूर्व या उत्तर की ओर बैठना चाहिए ताकि उन्हें ऊर्जा प्रवाह का लाभ मिल सके।

4. रसोई: शरीर और आत्मा का पोषण:

वास्तु शास्त्र में, रसोई केवल खाना पकाने का स्थान नहीं है; यह पोषण और समृद्धि का

प्रतीक है। रसोई के तत्वों जैसे चूल्हा, सिंक, और फ्रिज का स्थान और व्यवस्था सामंजस्य

बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

उपाय:

  • रसोई का आदर्श स्थान दक्षिण-पूर्व कोना है। यदि यह संभव नहीं है, तो उत्तर-पश्चिम दूसरा

सबसे अच्छा विकल्प है।

  • चूल्हा, जो अग्नि का प्रतीक है, को दक्षिण-पूर्व में रखना चाहिए और खाना पकाते समय

रसोइया पूर्व की ओर मुंह करके खड़ा होना चाहिए।

  • सिंक और अन्य जल तत्वों को चूल्हे से अलग रखना चाहिए ताकि जल और अग्नि तत्वों के

बीच संघर्ष न हो। यदि वे बहुत करीब हैं, तो उनके बीच में एक हरा पौधा लगाएं।

5. शयनकक्ष: विश्राम और पुनर्जीवन का आश्रय:

शयनकक्ष एक व्यक्तिगत स्थान है जहाँ व्यक्ति आराम करता है और पुनर्जीवित होता है।

यहाँ की ऊर्जा शांति और विश्राम को बढ़ावा देना चाहिए, इसलिए शयनकक्ष के डिज़ाइन और

लेआउट पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

उपाय:

  • मास्टर बेडरूम को दक्षिण-पश्चिम कोने में होना चाहिए, क्योंकि यह दिशा स्थिरता और शक्ति

से जुड़ी होती है।

  • बिस्तर को सीधे किसी बीम के नीचे या दरवाजे के सामने न रखें, क्योंकि इससे तनाव और

स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। बिस्तर को दक्षिण या पश्चिम की ओर सिर करके रखना चाहिए।

  • शयनकक्ष की दीवारों और सजावट के लिए सुखदायक और हल्कें रंगों का प्रयोग करें।

चमकीले रंगों जैसे लाल या नारंगी से बचें, क्योंकि ये अत्यधिक उत्तेजक हो सकते हैं।

6. बाथरूम और शौचालय: अपशिष्ट और जल तत्वों का प्रबंधन :

बाथरूम और शौचालय वास्तु शास्त्र में अक्सर नकारात्मक ऊर्जा से जुड़े होते हैं। हालांकि, सही

स्थान और डिज़ाइन से इन प्रभावों को कम किया जा सकता है।

उपाय:

  • बाथरूम को आदर्श रूप से उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम कोनों में होना चाहिए।

  • बाथरूम के दरवाजे बंद रखें और सुनिश्चित करें कि ये रसोई या पूजा कक्ष की ओर न हों।

  • बाथरूम में एक कांच के बाउल में समुद्री नमक रखें ताकि नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित

किया जा सके और ताजगी बनी रहे।


वास्तु शास्त्र हमारे घर को प्राकृतिक और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संतुलित करने के लिए एक समग्र मार्गदर्शन प्रदान करता है। इन सरल उपायों को अपनाकर, हम अपने घरों में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ा सकते हैं |

अपने घर में इन सरल उपायों को लागू करें और देखिए कि कैसे आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं!


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