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आमलकी एकादशी 2025: तिथि, पूजा विधि, और मुहूर्त - आपके लिए पूर्णमार्गदर्शन :

आमलकी एकादशी, जिसे आंवला एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रतों में से एक

है। इस व्रत का आयोजन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इसे भगवान

विष्णु के पूजन का विशेष दिन माना जाता है, जो जीवन में समृद्धि, सुख और शांति लाने के लिए एक

अत्यधिक प्रभावी व्रत है। ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, यह व्रत न केवल मानसिक शांति का

कारण बनता है, व्यक्ति को पुण्य, सुख, और धन-धान्य की प्राप्ति भी होती है, बल्कि जीवन के कष्ट भी दूर

हो जाते हैं।

आमलकी एकादशी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त और योग :

तिथि और शुभ मुहूर्त:

  • आमलकी एकादशी 2025 में उदया तिथि के अनुसार: 10 मार्च सोमवार को मनाई जाएगी।

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 9 मार्च 2025 को प्रातः 7:40 बजे

  • एकादशी तिथि समाप्त: 10 मार्च 2025 को प्रातः 7:35 बजे

व्रत का शुभ मुहूर्त:

  • 10 मार्च 2025 को सुबह 7:35 बजे से व्रत आरंभ होगा।

आमलकी एकादशी के दिन शोभन और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बनता है। इसके अलावा पुष्य नक्षत्र का

संयोग होने के कारण, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन पूजा करने से

मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन में खुशियां आती हैं।

पूजा विधि और नियम :

पूजा विधि:

आमलकी एकादशी की पूजा विधि निम्नलिखित है:

1. व्रत का संकल्प: सबसे पहले भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।

2. स्नान और पूजा: स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें।

3. दीपक जलाना: घी का दीपक जलाएं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

विष्णु मंत्र:

ॐ श्री विष्णुं श्रीधरं श्रीनिवासं परमात्मनं

श्रीपतिं श्रीगोपिं श्रीप्रभुं सर्वमंगलं यत:।

4. नौ रत्नों से भरा कलश: पूजा के दौरान नौ रत्नों से भरा कलश आंवले के पेड़ के नीचे रखें।

आंवले के पेड़ की पूजा: आंवले के पेड़ की पूजा करते समय, धूप, दीप, चंदन, होली के फूल, अक्षत आदि

का उपयोग करें।

श्लोक:

आंवला मणि पुष्पाणि प्राणं च श्रीपतेन य:।

पूजयित्वा मुधा भक्त्या सुखी भवेत् सदा सदा।।

5. आंवला फल का भोग: यदि आंवला का पेड़ उपलब्ध नहीं है, तो आंवला फल को भगवान विष्णु को भोग लगाएं।

6. गरीबों को भोजन: आंवले के पेड़ के नीचे किसी गरीब, जरूरतमंद या ब्राह्मण को भोजन कराएं।

7. व्रत पारण: द्वादशी तिथि को स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और ब्राह्मण

को कलश, वस्त्र और आंवला का दान दें। इसके बाद अन्न ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

व्रत के नियम:

आमलकी एकादशी व्रत के पालन के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें:

1. दशमी तिथि से नियम पालन:

o दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन करना शुरू करें।

o सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।

o ब्रह्मचर्य का पालन करें और भगवान नारायण का ध्यान करें।

2. तिथि के दिन परहेज करें:

o चावल, उड़द, चना, मूंग, मसूर, प्याज, लहसुन, शराब और नशीले पदार्थों का सेवन न करें।

आमलकी एकादशी के लाभ:

आमलकी एकादशी के व्रत को करने से जीवन में अनेक लाभ होते हैं:

1. सभी पापों का नाश होता है।

2. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3. अशुभता दूर होकर सौभाग्य बढ़ता है।

4. भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

आंवला वृक्ष का महत्व :

आंवला वृक्ष के संबंध में पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के मुख से एक बिंदु

प्रकट हुई थी, जिससे आंवला वृक्ष की उत्पत्ति हुई। आंवला फल भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय है और यह

फल पुण्य तथा मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माना जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और व्यक्ति सौभाग्यशाली बनता है।

यह व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है और इसके द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

1. फाल्गुने मासि शुक्लायां, एकादश्यां जनार्दन:।

फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान जनार्दन (विष्णु) का पूजन करना

चाहिए|

2. वसत्यामलकीवृक्षे, लक्ष्म्या सह जगत्पति:।

जहां आंवला वृक्ष होता है, वहां भगवान विष्णु (जगत्पति) और मां लक्ष्मी का निवास होता है।

3. तत्र संपूज्य देवेशं शक्त्या कुर्यात् प्रदक्षिणां।

वहां भगवान विष्णु को पूजा करें और शक्तिपूर्वक प्रदक्षिणा करें।

4. उपोष्य विधिवत् कल्पं, विष्णुलोके महीयते।।

जो व्यक्ति इस दिन उपवासी होकर विधिपूर्वक व्रत करता है, वह भगवान विष्णु के लोक में

प्रतिष्ठित होता है।


ब्रह्मांड पुराण में इस व्रत के प्रभाव के बारे में कहा गया है कि इस व्रत को करने से दुःखों का अंत हो जाता

है और जो अशुभ घटनाएं हो रही होती हैं, वे शुभ में बदल जाती हैं। इस व्रत के दौरान किया गया पूजा और

ध्यान व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और वह हर प्रकार की अशुभता से मुक्त

हो जाता है।

महर्षि वशिष्ठ ने आमलकी एकादशी के बारे में कहा है कि यह व्रत अन्य सभी व्रतों में सर्वोत्तम है और मोक्ष

की प्राप्ति में सहायक होता है। वे यह भी बताते हैं कि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर यदि

इस व्रत को सही तरीके से किया जाए तो यह व्यक्ति के समस्त पापों का नाश करता है। यह व्रत इतना

फलदायी है कि इसके फल के बराबर एक हजार गायों का दान माना जाता है।

अतः यह व्रत न केवल व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है बल्कि जीवन में सुख, शांति

और समृद्धि भी लाता है। इसे करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता

है।

आंवला वृक्ष में देवताओं का वास:

आंवला वृक्ष के हर भाग में देवताओं का निवास माना जाता है:

  • जड़ में: विष्णु, ब्रह्मा और शिव का वास

  • शाखाओं में: ऋषि-मुनियों का निवास

  • टहनियों में: सभी देवता

  • पत्तियों में: वसु

  • फूलों में: मरुतगण

  • फलों में: सभी प्रजापति

इसलिए, आंवला वृक्ष का पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। इसे पूजने से जीवन में समृद्धि, सुख और

शांति का वास होता है।

आमलकी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में समृद्धि, सुख, और शांति के

लिए अत्यंत लाभकारी है। इस व्रत को विधिपूर्वक और श्रद्धा से करने से व्यक्ति के जीवन में शुभता,

स्वास्थ्य, और सुख का वास होता है।

ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, यह व्रत न केवल मानसिक शांति का कारण बनता है, बल्कि व्यक्ति

को पुण्य, सुख, और धन-धान्य की प्राप्ति भी होती है।

आशा है, यह ब्लॉग आपको आमलकी एकादशी के महत्व और विधि को समझने में मदद करेगा।

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